बुधवार, 22 दिसंबर 2010

शहद के गुण, दोष और प्रभाव

शहद के गुण, दोष और प्रभाव

चश्मे से छुटकारा


मिस्टर चश्मुद्दीन' को यों तो चश्मे से कोई खास दिक्कत नहीं थी, लेकिन जब कभी ब्लूलाइन में चढ़ने की बारी आती या किसी से झगड़ा हो जाता या फिर आर्मी, एयर फोर्स का कोई फिजिकल टेस्ट पास करना होता, तो जरूर उन्हें अपनी ये दो एक्स्ट्रा आंखें दुश्मन दिखाई देतीं। आखिर 'मिस्टर चश्मुद्दीन' ने चश्मे से छुटकारा पाने का फैसला किया और सर्जरी कराकर अपनी इन दो एक्स्ट्रा आंखों को बाय-बाय कह दिया। चश्मा हटाने के कौन-कौन से तरीके इन दिनों उपलब्ध हैं? इन पर कितना खर्च आता है और इनमें रिस्क क्या हैं? ऐसे ही तमाम सवालों के जवाब एक्सपर्ट्स की मदद से तलाशे प्रभात गौड़ ने :

हमारी आंखें
चश्मा हटाने के बारे में जानने से पहले हमें यह समझना होगा कि आंख काम कैसे करती है और नजर कैसे कमजोर होती है।

कैसे काम करती है आंख : आंख जब किसी चीज को देखती है तो उस चीज से रिफ्लेक्ट होनेवाली रोशनी आंख की कॉनिर्या के पीछे मौजूद नैचरल लेंस से गुजरकर रेटिना पर फोकस होती है। रेटिना नर्व्स का बना होता है और सामान्य आंख में इसी पर आकर उस चीज की इमेज बनती है। इसके बाद ये र्नव्स उस इमेज के संकेत दिमाग को भेज देती हैं और दिमाग चीज को पहचान लेता है।

नॉर्मल आंख : जब किसी चीज की इमेज सीधे रेटिना पर बनती है, तो हम उस चीज को साफ-साफ देख पाते हैं और माना जाता है कि नजर ठीक है।

मायोपिया या निकट दृष्टि दोष : जब कभी चीज की इमेज रेटिना पर न बनकर, उससे पहले ही बन जाती है तो चीज धुंधला दिखाई देने लगती हैं। इस स्थिति को मायोपिया कहा जाता है। इसमें आमतौर पर दूर की चीजें धुंधली दिखाई देती हैं। चश्मा या कॉन्टैक्ट लेंस लगाकर इस स्थिति में सुधार किया जाता है। मायोपिया कई मामलों में शुरुआती छोटी उम्र में भी हो सकता है। यानी 6 साल के आसपास भी मायोपिया आ सकता है।

चश्मा हटाने के तरीके

कॉन्टैक्ट लेंस
चश्मा हटाने के लिए कॉन्टैक्ट लेंस का ऑप्शन काफी पुराना है, जिसमें किसी सर्जरी की जरूरत नहीं होती। बेहद पतली प्लास्टिक के बने कॉन्टैक्ट लेंस आंख की पुतली पर मरीज खुद ही लगा लेता है और रात को सोते वक्त उन्हें उतार देता है। ये लेंस कर्वी होते हैं और आंख की पुतली पर आसानी से फिट हो जाते हैं। कितने नंबर का लेंस लगाना है, कैसे लगाना है और देखभाल कैसे करनी है, ये सब बातें डॉक्टर मरीज को समझा देते हैं। बाहर से देखकर कोई अंदाजा नहीं लगा सकता कि आंखों में लेंस लगे हैं या नहीं।

कॉन्टैक्ट लेंस दो तरह के होते हैं - रिजिड और सॉफ्ट। जिस लेंस की जितनी ऑक्सिजन परमिएबिलिटी (अपने अंदर से ऑक्सिजन को पास होने देने की क्षमता) होगी, वह उतनी ही अच्छा होगा।

कॉन्टैक्ट लेंस के मामले में सबसे महत्वपूर्ण है इसकी देखभाल। इन्हें साफ, सूखा और इन्फेक्शन से बचा कर रखना जरूरी है। कभी बाहर की चीजें और कभी आंख के आंसुओं आदि की वजह से कॉन्टैक्ट लेंस पर कुछ जमा हो जाता है। ऐसे में लेंसों को पहनने से पहले और निकालने के बाद हाथ की हथेली पर रखकर उनके साथ दिए गए सल्यूशन से साफ करना जरूरी होता है। सल्यूशन नहीं है, तो लेंस को पानी आदि से साफ करने की कोशिश न करें। बिना सल्यूशन के लेंस खराब हो सकता है। सल्यूशन आपके पास होना ही चाहिए।

कॉन्टैक्ट लेंस लगाने के शुरुआती दिनों में थोड़ी दिक्कत हो सकती है, लेकिन आदत पड़ जाने पर इनका पता भी नहीं चलता।

एक बार लेंस लेने के बाद डॉक्टर से रुटीन चेकअप कराते रहना चाहिए। डॉक्टर की सलाह के मुताबिक इन लेंसों को बदलते भी रहना चाहिए।

जिन लोगों की आंखें ड्राई रहती हैं या ज्यादा सेंसिटिव हैं या फिर किसी तरह की कोई एलर्जी है, उन्हें कॉन्टैक्ट लेंस पहनने की सलाह नहीं दी जाती।

अगर साफ-सफाई का ध्यान रखा जाए और डॉक्टर के कहे मुताबिक लेंस का इस्तेमाल किया जाए तो कॉन्टैक्ट लेंसों का कोई रिस्क नहीं है।

स्विमिंग करते वक्त कॉन्टैक्ट लेंस नहीं लगाने चाहिए। मेकअप करते और उतारते वक्त कोशिश करें कि लेंस न पहने हों।

लेंस को हथेली पर रखकर सल्यूशन की मदद से रोजाना साफ करना जरूरी है। जब पहनें, तब भी साफ करें और जब निकालें, तब भी साफ करके ही रखें। अगर हर महीने लेंस बदल रहे हैं, तब भी रोजाना सफाई जरूरी है।

कुछ खास स्थितियों में ही डॉक्टर छोटे बच्चों को कॉन्टैक्ट लेंस बताते हैं, वरना जब तक बच्चे लेंस की देखभाल करने लायक न हो जाएं, तब तक उन्हें लेंस लगाने की सलाह नहीं दी जाती।

ऐसा कभी नहीं होता कि लेंस आंख में खो जाए या उससे आंख को कोई नुकसान हो। कई बार यह आंख में सही जगह से हट जाता है। ऐसे में आंख को बंद करें और धीरे-धीरे पुतली को हिलाएं। लेंस अपने आप अपनी जगह आ जाएगा।

कॉन्टैक्ट लेंस यूज करने वालों को अपने साथ चश्मा भी रखना चाहिए। आप जब चाहें, चश्मा लगा सकते हैं और जब चाहें, लेंस लगा सकते हैं।

सर्जरी
चश्मा हटाने के लिए आमतौर पर तीन-चार तरह के ऑपरेशन किए जाते हैं। कुछ साल पहले तक रेडियल किरटोटमी ऑपरेशन किया जाता था, लेकिन आजकल यह नहीं किया जाता। इससे ज्यादा लेटेस्ट तकनीक अब आ गई हैं। हम यहां चार तरह की सर्जरी की बात करेंगे। इन सभी में विजन 6/6 (परफेक्ट विजन) आ जाता है, लेकिन सबकी क्वॉलिटी अलग-अलग है। नंबर चाहे प्लस का हो या फिर माइनस का या फिर दोनों, सर्जरी के इन तरीकों से सभी तरह के चश्मे हटाए जा सकते हैं यानी मायोपिया और हाइपरोपिया दोनों ही स्थितियों को इन तरीकों से अच्छा किया जा सकता है।

कुछ में सर्जरी के बाद कुछ समस्याएं हो सकती हैं, तो कुछ एक निश्चित नंबर से ज्यादा का चश्मा हटाने में कामयाब नहीं हैं। ऐसे में डॉक्टर आंख की पूरी जांच करने के बाद ही यह सही सही-सही बता पाते हैं कि आपके लिए कौन-सा तरीका बेहतर है।

कौन करा सकता है सर्जरी
जिन लोगों की उम्र 18 साल से ज्यादा है और उनके चश्मे का नंबर कम-से-कम एक साल से बदला नहीं है, वे लेसिक सर्जरी करा सकते हैं।

अगर किसी शख्स की उम्र 18 साल से ज्यादा है लेकिन उसका नंबर स्थायी नहीं हुआ है, तो उसकी सर्जरी नहीं की जाती। सर्जरी के लिए एक साल से नंबर का स्थायी होना जरूरी है।

जिन लोगों का कॉर्निया पतला है, उन्हें ऑपरेशन की सलाह आमतौर पर नहीं दी जाती।

गर्भवती महिलाओं का भी ऑपरेशन नहीं किया जाता।

कितनी तरह की सर्जरी

सिंपल लेसिक
सिंपल लेसिक सर्जरी को पहले यूज किया जाता था, लेकिन अब डॉक्टर इसका इस्तेमाल नहीं करते। वजह यह है कि ऑपरेशन के बाद इसमें काफी जटिलताएं होने की आशंका बनी रहती है, मसलन आंखें चुंधिया जाना आदि। हालांकि इस तरीके से ऑपरेशन करने के बाद चश्मा पूरी तरह हट जाता है और नजर क्लियर हो जाती है। जहां तक खर्च का सवाल है, तो इसमें दोनों आंखों के ऑपरेशन का खर्च करीब 20 हजार रुपये आता है।

सी-लेसिक
इसे कस्टमाइज्ड लेसिक भी कहा जाता है। चश्मा हटाने के लिए किए जानेवाले ज्यादातर ऑपरेशन आजकल इसी तकनीक से किए जा रहे हैं। सिंपल लेसिक कराने के बाद आनेवाली तमाम दिक्कतें इसमें नहीं होतीं। इसे रेडीमेड और टेलरमेड शर्ट के उदाहरण से समझ सकते हैं - मतलब सिंपल लेसिक अगर रेडीमेड शर्ट है तो सी-लेसिक टेलरमेड शर्ट है। सिंपल लेसिक में पहले से बने एक प्रोग्राम के जरिए आंख का ऑपरेशन किया जाता है, जबकि सी-लेसिक में आपकी आंख के साइज के हिसाब से पूरा प्रोग्राम बनाया जाता है। कहने का मतलब हुआ कि सी लेसिक में आंख विशेष के हिसाब से ऑपरेशन किया जाता है, इसलिए यह ज्यादा सटीक है। जहां तक ऑपरेशन के बाद की आनेवाली दिक्कतों की बात है तो सी-लेसिक में वे भी बेहद कम हो जाती हैं। यह सिंपल लेसिक के मुकाबले ज्यादा सेफ और बेहतर है। खर्च दोनों आंखों का लगभग 30 हजार रुपये आता है।

तरीका : जिस दिन ऑपरेशन किया जाता है, उस दिन मरीज को नॉर्मल रहने की सलाह दी जाती है। इस ऑपरेशन में दो से तीन मिनट का वक्त लगता है और उसी दिन मरीज घर जा सकता है। ऑपरेशन करने से पहले डॉक्टर आंख की पूरी जांच करते हैं और उसके बाद तय करते हैं कि ऑपरेशन किया जाना चाहिए या नहीं। ऑपरेशन शुरू होने से पहले आंख को एक आई-ड्रॉप की मदद से सुन्न (ऐनस्थीजिआ) किया जाता है। इसके बाद मरीज को कमर के बल लेटने को कहा जाता है और आंख पर पड़ रही एक टिमटिमाती लाइट को देखने को कहा जाता है। अब एक स्पेशल डिवाइस माइक्रोकिरेटोम की मदद से आंख के कॉनिर्या पर कट लगाया जाता है और आंख की झिल्ली को उठा दिया जाता है। इस झिल्ली का एक हिस्सा आंख से जुड़ा रहता है। अब पहले से तैयार एक कंप्यूटर प्रोग्राम के जरिए इस झिल्ली के नीचे लेजर बीम डाली जाती हैं। लेजर बीम कितनी देर के लिए डाली जाएगी, यह डॉक्टर पहले की गई आंख की जांच के आधार पर तय कर लेते हैं। लेजर बीम डल जाने के बाद झिल्ली को वापस कॉनिर्या पर लगा दिया जाता है और ऑपरेशन पूरा हो जाता है। यह झिल्ली एक-दो दिन में खुद ही कॉनिर्या के साथ जुड़ जाती है और आंख नॉर्मल हो जाती है। मरीज उसी दिन अपने घर जा सकता है। टांके या दर्द जैसी कोई शिकायत नहीं होती। एक या दो दिन के बाद मरीज अपने सामान्य कामकाज पर लौट सकता है। कुछ लोग ऑपरेशन के ठीक बाद रोशनी लौटने का अनुभव कर लेते हैं, लेकिन ज्यादातर में सही विजन आने में एक या दिन का समय लग जाता है।

बाद में भी रखरखाव जरूरी : ऑपरेशन के बाद दो से तीन दिन तक आराम करना होता है और उसके बाद मरीज नॉर्मल काम पर लौट सकता है। स्विमिंग, मेकअप आदि से कुछ हफ्ते का परहेज करना होगा। जो बदलाव कॉर्निया में किया गया है, वह स्थायी है इसलिए नंबर बढ़ने या चश्मा दोबारा लगने की भी कोई दिक्कत नहीं होती, लेकिन कुछ और वजहों मसलन डायबीटीज या उम्र बढ़ने के साथ चश्मा लग जाए, तो बात अलग है।

ब्लेड-फ्री लेसिक या आई-लेसिक
सर्जरी की मदद से चश्मा हटाने का यह लेटेस्ट तरीका है। सिंपल लेसिक और सी-लेसिक में कॉर्निया पर कट लगाने के लिए एक माइक्रोकिरेटोम नाम के डिवाइस का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन ब्लेड-फ्री लेसिक में इस कट को भी लेसर की मदद से ही लगाया जाता है। बाकी सर्जरी का तरीका सी-लेसिक जैसा ही होता है। अगर पावर ज्यादा है, कॉर्निया बेहद पतला है, तो ब्लेड-फ्री लेसिक कराने की सलाह दी जाती है। वैसे, ऐसे लोगों को इसे ही कराना चाहिए, जिन्हें एकदम परफेक्ट विजन चाहिए मसलन स्पोर्ट्समैन, शूटर आदि। दोनों आंखों के ऑपरेशन का खर्च 85 हजार रुपये तक आ जाता है। आई-लेसिक सर्जरी में शुरुआत के दिनों में कुछ दिक्कतें हो सकती हैं, मसलन आंख के सफेद हिस्से पर लाल धब्बे, जो दो से तीन हफ्ते में खत्म हो जाते हैं। आंखों में थोड़ा सूखापन हो सकता है और कम रोशनी में देखने में कुछ दिक्कत हो सकती है। कुछ समय बाद ये दिक्कतें अपने आप दूर हो जाती हैं।

लेंस इंप्लांटेशन यानी ICL
अगर चश्मे का नंबर माइनस 12 से ज्यादा है और कॉर्निया इतना पतला है कि आई-लेसिक भी नहीं हो सकता है, तो डॉक्टर चश्मा हटाने के लिए लेंस इंप्लांटेशन तकनीक का यूज करते हैं। इसमें आंख के अंदर इंप्लांटेबल कॉन्टैक्ट लेंस (आईसीएल) लगा दिया जाता है। आईसीएल बेहद पतला, फोल्डेबल लेंस होता है, जिसे कॉनिर्या पर कट लगाकर आंख के अंदर डाला जाता है। जिस मिकेनिजम पर कॉन्टैक्ट लेंस काम करते हैं, यह लेंस भी उसी तरह काम करता है। फर्क बस इतना है कि इसे आंख में पुतली (आइरिस) के पीछे और आंख के नेचरल लेंस के आगे फिट कर दिया जाता है, जबकि कॉन्टैक्ट लेंस को पुतली के ऊपर लगाया जाता है। इसमें एक बार में एक ही आंख का ऑपरेशन किया जाता है। पूरी प्रक्रिया में लगते हैं 30 मिनट और दूसरी आंख का ऑपरेशन कम-से-कम एक हफ्ते के बाद किया जाता है। ऑपरेशन होने के बाद मरीज उसी दिन घर जा सकता है और दो-तीन दिन के बाद ही नॉर्मल रुटीन पर आ सकता है।

नजर बेहतर बनाने के दूसरे तरीके

होम्योपैथी
होम्योपैथी में आमतौर पर ऐसे दावे नहीं किए जाते कि इससे मायोपिया (दूर की नजर कमजोर होना) का नंबर हट सकता है, फिर भी अगर नंबर कम है और समय रहते दवाएं लेनी शुरू कर दी जाएं तो होम्योपैथिक दवाएं नजर को बेहतर बनाने और चश्मे के नंबर को कम करने या टिकाए रखने में बहुत कारगर हैं।

चश्मे का नंबर कम करने के लिए फाइसोस्टिगमा 6 ( Physostigma ) या रस टॉक्स 6 ( Rhus.Tox ) की चार-चार गोली दिन में तीन बार लेने लें।

कई बार आंखों की मसल्स कमजोर हो जाने की वजह से भी नजर कमजोर होती है। अगर ऐसी स्थिति है तो मरीज को जेलसीमियम 6 ( Gelsemium ) या बेलाडोना 6 ( Belladonna ) की चार-चार गोली दिन में तीन बार लेनी चाहिए।

अगर चोट आदि के बाद नजर कमजोर हुई हो तो आर्निका 6 ( Arnica ) या बेलिस 6 ( Belles) की चार-चार गोली दिन में तीन बार लेनी चाहिए।

नोट : चूंकि यह इलाज लंबा चलता है, इसलिए ये सभी दवाएं कम पोटेंसी की ही दी जानी चाहिए। वैसे कोई भी दवा लेने से पहले अपने डॉक्टर से सलाह जरूर कर लें।

आयुर्वेद
आयुर्वेद में भी मायोपिया के केस का चश्मा पूरी तरह हटाने के केस न के बराबर मिलते हैं, लेकिन आंखों की रोशनी बढ़ाने के लिए आयुवेर्द में काफी कुछ है। इन दवाओं और नुस्खों के काफी अच्छे रिजल्ट भी देखने को मिले हैं।

खाने में दूध, आंवला, गाजर, पपीता, संतरा और अंकुरित अनाज जरूर शामिल करें।

मां बच्चे को अपना दूध अच्छी तरह पिलाती है तो बच्चे की नजर कमजोर होने के आसार कम हो जाते हैं।

खाना खाने के बाद आधा चम्मच भुनी सौंफ और मिश्री को चबाकर खाने से आंखों की परेशानियां नहीं होतीं।

आंखों की रोशनी बढ़ाने और आंखों की दूसरी दिक्कतों के लिए आयुवेर्द में दो दवाओं का यूज किया जाता है। ये हैं त्रिफला घृत और सप्तामृत लौह। इन दवाओं को सेवन वैद्य की सलाह से करें। ये दवाएं बचाव के तौर पर नहीं ली जातीं। बीमारी होने पर डॉक्टर की सलाह से ही इन्हें लेना चाहिए। चश्मे का नंबर लगातार बढ़ रहा है तो ये दवाएं कारगर हैं।

एक बूंद शहद में एक बूंद प्याज का रस मिलाकर हथेली पर रगड़ लें। सोने से पहले आंखों में काजल की तरह लगाएं।

खाने के बाद गीले हाथों को दोनों आंखों पर फेरें।

हफ्ते में दो दिन पैर के तलुए और सिर के बीचोबीच तेल की मालिश करने से आंखों की रोशनी बढ़ती है।

एक चम्मच गाय का घी, आधा चम्मच शक्कर और दो काली मिर्च का चूर्ण मिला लें। इसे रोज सुबह खाली पेट लें। बच्चों की आंखों की रोशनी बढ़ाने के लिए बहुत बढि़या नुस्खा है।

योग
जिन लोगों की नजर कमजोर है, उन्हें नीचे दी गई यौगिक क्रियाओं को करना चाहिए। इन क्रियाओं को अगर सामान्य नजर वाले लोग भी नियमित करें तो उनकी आंखों की रोशनी कमजोर नहीं होगी। सलाह यही है कि कोई भी क्रिया योग विशेषज्ञ से सीखकर ही करनी चाहिए।

आंखों के यौगिक सूक्ष्म व्यायाम (नेत्र-शक्ति विकासक क्रियाएं) नियमित करें। इसमें क्रमश: आंखों को ऊपर-नीचे, दायें-बायें घुमाएं। इसके बाद दायें से बायें और बायें से दायें गोलाकार घुमाएं। हर क्रिया पांच से सात बार कर लें।

सूर्य नमस्कार 6 से 12 बार तक कर सकते हैं।

कपालभाति, भस्त्रिका, अनुलोम विलोम, भ्रामरी और उद्गीत प्राणायाम (ओम जाप) खासतौर से फायदा पहुंचाते हैं।

शुद्धि क्रियाओं में जलनेति, दुग्धनेति और घृतनेति कुछ दिन तक नियमित करने से नेत्र ज्योति में चमत्कारिक परिणाम मिलते हैं। इन क्रियाओं को किसी योग विशेषज्ञ से सीखकर ही करें।

ये योगासन आंखों की रोशनी बढ़ाते हैं : सर्वांगासन, मत्स्यासन, पश्चिमोत्तानासन, मंडूकासन, शशांकासन और सुप्तवज्रासन।

शुद्ध शहद या गुलाब अर्क आंखों में नियमित डालने से भी नेत्र ज्योति बढ़ती है।

त्रिफला को रात को भिगोकर रख दें। सुबह उसके जल को छान लें और उससे आंखें धोएं।

बच्चों को छह साल की उम्र के बाद योग करवाया जा सकता है, लेकिन आंखों की सूक्ष्म क्रियाएं छह साल से पहले भी शुरू कराई जा सकती हैं।

रविवार, 14 नवंबर 2010

बीटरूट या लाल शकरकंदी

बीटरूट में कोई फैट नहीं होता इसलिए इसे स्वास्थ्यवर्धक माना जाता है। इसमें बहुत कम मात्रा में कैलोरी होती तथा खूब अधिक मात्रा में फायबर होता है।

इसमें मौजूद बीटानिन और बीटाकेरोटीन प्राकृतिक एंटी ऑक्सीडेंट्स की तरह काम करते हैं। बीटरूट के सेवन से त्वचा में लालिमा आती है। इससे शरीर में हिमोग्लोबिन बढ़ता है।

आँखों की रोशनी के लिए भी बीटरूट फायदेमंद है। बीटरूट शरीर में वसा की मात्रा नहीं बढ़ने देता है। सर्दियों में बीटरूट विशेष फायदेमंद है। यह शरीर की ताकत बढ़ाता है। इससे आँतों की सफाई होती है।

कफ ,स्मृति और नेत्र ज्योति

दो कप पानी में उबली हुई एक चम्मच सौंफ को दो या तीन बार लेने से अपच और कफ की समस्या समाप्त होती है। सौंफ स्मृति और नेत्र ज्योति बढ़ाती है। विटामिन 'सी' से युक्त सौंफ में कैल्शियम, सोडियम, फॉस्फोरस, आयरन और पोटेशियम जैसे अहम तत्व होते हैं

शनिवार, 17 अप्रैल 2010

हर प्रकार के बदन दर्द

एक लहसुन का गठिया लेकर उसकी चार कलिया छीलकर तीस ग्राम सरसों के तेल में डाल दे । उसमें दो ग्राम अजवायन के दाने डाल कर धीमी-धीमी आँच में पकायें । लहसुन और अजवायन काली पड़ने पर तेल उताकर थोड़ा ठण्डा कर छान लें । इस सुहाते गर्म तेल की मालिश करने से हर प्रकार का बदन दर्द दूर हो जाता है ।

सारे शरीर में खुजली

100 ग्राम नारियल के तेल में 5 ग्राम देशी कपूर (कपूर डेला) मिलाकर किसी कांच की शीशी में भर लें और कसकर डाट लगा दें। हिलाने अथवा कुछ देर धूप में रखने से तेल और कपूर एक रस हो जायेंगे । रोजाना नहाने से पहले इस तेल की मालिश करने से सारे शरीर में उठने वाली खुजली में आराम मिलता है और सार चर्म विकार दूर हो जाते है । सारे शरीर में खाज होने से इस तेल की 10 बून्द बाल्टी भर पानी में डालकर नहाने से भी वह शांत हो जाती है ।

विशेष - दाद विशेषकर (जिसमें फुंसी की तरह दाने निकल कर जलन और खुजली के साथ पानी निकलता हो ) में इस तेल को रात को सोते समय दाद के स्थान पर लगायें । कुछ दिनों में इस घाव में सफेद खाल आयेगी और त्वचा अपने असली रंग में आ जायेगी ।

तुतलाना एवं हकलाना

बच्चे यदि एक ताजा हरा आँवला रोजाना कुछ दिन चबाएँ तो तुतलाना और हकलाना मिटता है। जीभ पतली और आवाज साफ आने लगती है। मुख की गर्मी भी शांत होती है।
बादाम की गिरी सात, काली मिर्च सात, दोनो को कुछ बूंदे पानी के साथ घिसकर चटनी से बना लें और इसमे जरा-सी मिश्री पिसी हुई मिलाकर चाटें। प्रात: खाली पेट कुछ दिन लें।
स्पष्ट नहीं बोलने और काफी ताकत लगाने पर भी हकलाहट दूर न हो तो दो काली मिर्च मुँह में रखकर चबायें-चूसे। यह प्रयोग दिन में दो बार लम्बे समय तक करे।

पानी अनेक रोगों की एक दवा-जल चिकित्सा पध्दति

सायंकाल ताम्बे के एक बर्तन में पानी भरकर रख लें। प्रात: सूर्योदय से पहले उस बासी पानी को पीयें तथा सौ कदम टहल कर शौच जायें। इससे कब्ज दूर होकर शौच खुलकर आयेगी। इससे मलशुध्दि के साथ बवासीर, उदय रोग, यकृत-प्लीहा के रोग, मूत्र और वीर्य सम्बन्धी रोग, सिर दर्द,नेत्रविकार तथा वात पित्त और कफ से होने वाले अनेकानेक रोगों से मुक्त रहता है। बुढ़ापा उसके पास नहीं फटकता और वह शतायु रहता है

नेत्र-विकारों से बचाव

सुबह दांत साफ करके, मुँह में पानी भरकर मुँह फुला लें। इसके बाद आखॉं पर ठ्ण्डे जल के छीटे मारें। प्रातिदिन इस प्रकार दिन तीन बार प्रात: दोपहर तथा सांयकाल ठ्ण्डे जल से मुख भरकर, मुँह फुलाकर ठ्ण्डे जल से ही आखॉं पर हल्के छींटे मारने से नेत्र में तेजी का अहसास होता है और किसी प्रकार नेत्र विकार नहीं होता ।
विशेष - ध्यान रहे कि मुँह का पाने गर्म न होनी पाये। गर्म होने से पानी बदल लें । मुँह से पाने निकालते समय भी पूरे जोर से मुँह फुलाते हुए वेग से पानी छोड़ने से ज्यादा लाभ होता है, आँखों के आस पास झुर्रियाँ नहीं पड़ती

फेफड़ों के रोगों से बचाव

ताजा मुनक्को के 15 दानो को पानी से साफ करके रात में 150 ग्राम पानी में भिगो दें। प्रात:काल तक वे फूल जायेगें । प्रात: बीज निकाल कर उन्हें एक-एक करके खूब चबायें । बचे हुए पानी को भी पीलें । एक माह तक सेवन करने से फेफड़े की कमजोरी खत्म हो जाती है ।

खाँसी से बचाव

भोजन के एक घण्टे बाद पानी पीने की आदत डाली जाये तो केवल आप खाँसी से बचे रहेगें बल्कि आपकी पाचन शक्ति भी अच्छी बनी रहेगी ।

मुख के रोगों से बचाव

मुख में कुछ देर सरसों का तेल रखकर कुल्ली करने से जबड़ा बलिष्ट होता है। आवाज ऊँची और गंभीर हो जाती है। चेहरा पुष्ट हो जाता है और छ: रसों में से हर एक को अनुभव करने की शक्ति बढ़ जाती है। इस क्रिया से कण्ठ नहीं सूखता और होंठ नहीं फटते हैं। दांत भी नहीं टूटते क्योंकि दांतो की जड़े मजबूत हो जाती है।

विशेष - सरसों का तेल की अकेले दांत व मसूड़ों पर मालिश करने से भी दांत मजबूत होटल हैं।

दांतों की मजबूती के लिये

यदि मल-मूत्र त्याग के समय रोजाना उपर-नीचे के दांत को भींचकर बैठा जाये तो दांत जीवन नहीं हिलते। इससे दांत मजबूत होते है और जल्दी नहीं गिरते। लकवा मारने का डर भी नहीं रहता।
विशेष - स्त्री,पुरुष बालक सभी को जब भी वे शौच तथा करने जायें ऐसी आदत अवश्य डालनी चाहिये। इससे दांतों का पायरिया,खून या पीप आना, दांतों का हिलना बहुत शीघ्र बन्द हो जाता है। हिलते दांत आश्चर्यजनक रूप से दृढ़ हो जाते हैं